बिहार चुनाव 2025: पेचीदा राजनीति के बीच जनता की उलझन, किसके हाथ बहुमत का सिक्का?
पटना। जेपी न्यूज ( विद्रोही).
इस बार बिहार विधानसभा चुनाव 2025 का परिदृश्य बेहद पेचीदा और जटिल होता जा रहा है। कोई भी सटीक अनुमान नहीं लगा पा रहा कि चुनाव का अंतिम सिक्का किसके पाले में गिरेगा। बिहार की जनता भी असमंजस में है, क्योंकि हर दल अपने आप को विकास और जनहित का सबसे बड़ा पैरोकार बता रहा है। सवाल यही उठता है कि आखिरकार कौन है वह सच्चा तरनहार, जो बिहार को नए युग की ओर ले जाएगा।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि बिहार में जातीय राजनीति ने एक गहरी चोट पहुंचाई है। यहां सैकड़ों चुनिंदा नेता के पास अकूत संपत्ति मौजूद है, जिसे चुनाव लड़ने और टिकट खरीदने में बखूबी इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन समाज और गांव के विकास के लिए उसका उपयोग नहीं किया जाता। नेताओं को खान सर की सीख लेनी चाहिए, जिन्होंने अपनी निजी संपत्ति अस्पताल निर्माण में लगाकर समाज सेवा का अनूठा उदाहरण पेश किया। पर सवाल आज भी बरकरार हैं – बिहार के मंत्री, विधायक और सांसद अपनी संपत्ति फैक्ट्री, अस्पताल या मुफ्त शिक्षा जैसे जनहित के कार्यों में क्यों नहीं लगाते? यह सवाल हर जनमानस के जेहन में गूंज रहा है।
वहीं चुनावी रणभूमि सजने लगी है। पासे बिछने शुरू हो चुके हैं। इस बार पूरे देश की निगाहें बिहार विधानसभा चुनाव पर टिकी हुई हैं। मुख्य मुकाबला एनडीए के पक्ष में नीतीश कुमार की अगुवाई और इंडिया गठबंधन के तहत राहुल गांधी, लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी यादव की ताकतवर जोड़ी के बीच माना जा रहा है।
इसके अलावा, नए राजनीतिक रंग के रूप में जनसुराज पार्टी की भी हल्दी लगने की पूरी तैयारी है। यह पार्टी क्षेत्रीय समस्याओं और विकास मॉडल को लेकर अलग सोच के साथ मैदान में उतर रही है। प्रशांत किशोर के मार्गदर्शन में जनसुराज ने बड़े राजनीतिक आयाम तैयार किए हैं, जो इस चुनावी समीकरण को और भी रोचक बना रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार बिहार की जनता की सोच में बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। जनता पुराने वादों और जातीय राजनीति से हटकर विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों पर ध्यान देगी। परंतु यह सवाल भी अटल है कि क्या ये नई सोच जनता तक पहुँच पाएगी या वही पुरानी राजनीतिक समीकरण दोहराए जाएंगे।
अब सबकी निगाहें बिहार पर टिकी हैं – कौन बनेगा विजेता और किसके हाथ आएगा बहुमत का सिक्का?